YOGAMAYA
योगमाया श्री योगमाया वह अद्भुत तत्त्व है जिसके कारण निर्गुण निराकार परब्रह्म कल्याण गुणगणाकर मूर्तिमान् बन जाते हैं यद्यपि इन दोनों— शक्ति तथा शक्तिमान में कोई भेद नहीं तथापि भक्तों से आराधित शक्तिमान् जिस प्रकार श्रीराम- कृष्णादि अनेक रूपों में दर्शन देते हैं, उसी प्रकार ऋषि - मुनि - संस्तुता शक्ति भी श्रीदुर्गा, देवी, काली आदि नानाविध रूपों में प्रकट होती हैं। भाव के तारतम्य के अनुसार ही शास्त्र में, उपासना विधि में व्यावहारिक भेद दृष्टिगोचर होता है, जैसे किसी भावुक भक्त को अघटन घटनापटीयसी शक्ति देवी की अपार महिमा के सम्मुख ब्रह्मा - विष्णु - महेश भी गौण प्रतीत होते हैं तो किसी दूसरे भक्त को शक्ति शक्तिमान के अधीन विदित होती है। परमार्थतः दोनों एक ही वस्तु हैं। शास्त्र में इन महाप्रभावा योगमाया का वर्णन अनेक स्थलों पर उपलब्ध है। वेद के एक मन्त्र में शक्ति - शक्तिमान को भाई - बहिन मानकर उनका आह्वान किया गया है- एष ते रुद्र भागः सह स्वस्त्राम्बिकया तं जुषस्व। 'अम्बिका बहिन के साथ हे रुद्र! यह आपका भाग है, इसे पाइये।' मार्कण्डेयपुराण तथा देवीभागवत इन जगतजननी ...