YOGISM OR PHILOSOPHY
योगधर्म या दर्शन
अब तक हम लोगों ने योग के धर्म का साथ तथा दर्शन के साथ सम्बन्धो की समीक्षा की है। अब यह निश्चय समझ लेना चाहिये कि योग इन दोनों से भिन्न है। विश्वास तथा आस्था की दृष्टि से यह धर्म नहीं कहा जा सकता। आप किसी भी धर्म के व्यक्ति हो सकते हैं और ऐसा होते हुए भी योग के अत्यन्त प्रेमी बन सकते हैं। वास्तव में योग एक सार्वभौम विश्व - धर्म है। योग को दृष्टि में धर्म एक विज्ञान है। यह ईसा के हजारों वर्ष पूर्व भारत में विकसित हो चुका था। यही प्राचीन योग - प्रणाली सम्पूर्ण धार्मिक क्रान्तियों की जननी रही है और सभी आध्यात्मिक एवं धार्मिक भावनाओं को प्रेरणा देती रही है। इसलिये यदि आप योग का अध्ययन करते हैं तो आप अपने धर्म का ही अध्ययन करते हैं और अपनी आस्था तथा धार्मिक भावनाओं को दृढ़ करते हैं तथा अपने धर्मग्रन्थों का तात्त्विक रहस्य उस योग के द्वारा स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं।
इसी तरह योग शिक्षा को दृष्टि में कोई दर्शन नहीं है। यह मानवीय बुद्धि के करामातों से बाँधा नहीं गया है और मानवीय बुद्धि के आधार पर टिका भी नहीं है। यह संत - महात्माओं के अनुसंधानों की आधार भित्ति पर स्थित है। जिन ऋषियों ने साक्षात् भगवान को प्राप्त कर लिया था या आत्मा का दर्शन कर लिया था, यह उनके द्वारा प्रदिष्ट विधियों का निदेर्शन है और आध्यात्मिक आचार - प्रणाली का क्रमिक दर्शन कराता है तथा साधक को अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचा देने में समर्थ होता है। इस प्रकार व्यावहारिक रूप में योग एक दीक्षात्मक दर्शन एवं सार्वभौम धर्म का प्रतीक है।
बुद्धियोग का स्वरूप
भक्तियोग का स्वरूप
भक्तियोग भगवान को प्रेम को प्राप्त करने का मार्ग है। संसार के अधिकांश धर्म भगवान के प्रति प्रेम को अत्यधिक महत्त्व देते हैं। सभी धर्मो में प्रत्येक व्यक्ति को भगवान के प्रति श्रद्धा - भक्ति एवं प्रेम करने का उपदेश दिया गया है तथा परिपूर्ण आत्मसमर्पण के द्वारा एक अद्भुत आनन्द को अनुभूति करने का भी उपदेश दिया गया है। योगमार्ग में भक्तियोग के द्वारा भगवान की भक्ति और प्रेम - प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। आप केवल ईश्वर से इसलिये प्रेम नहीं करते हैं कि आप अत्यन्त भयभीत हैं या किसी कष्ट में पड़कर उद्विग्न हो गये हैं। भगवान के गूढ़ रहस्यों को युक्ति, तर्क तथा वैज्ञानिक प्रक्रिया के अनुसार अध्ययन करने तथा हृदयङ्गम करने का प्रयत्न करना चाहिये।
ध्यानयोग ( राजयोग ) मन को एकाग्र करने की कला
जब आप विषम समस्याओं से घिर जाते हैं, तब यह आप के लिये सोचना आवश्यक हो जाता है कि आप अपने मस्तिष्क को किस प्रकार बिलकुल शान्त कर उस समस्या से मुक्त होने का उपाय सोच सकते हैं और कैसे मुक्त हो सकते हैं। यदि आप इसमें समर्थ हो जाते हैं तो आप किसी भी समस्या का समाधान करने या हल निकालने में सक्षम हो जाते हैं। दूसरी ओर यदि आप मन को एकाग्र नियन्त्रित कर उस समस्याका हल नहीं ढूँढ़ पाते तो विषम परिस्थितियों से मुक्त होने में भी असमर्थ होते हैं। मनोविज्ञान के वैज्ञानिक तथा मन को ही सब कुछ मानने वाले योगी मस्तिष्क के अन्तर्गत ही एक दूसरी समानान्तर वस्तु का अन्वेषण करते हैं, जिसके आश्रय से मनुष्य स्वयं अपने मन और हृदय से ऊपर उठ सकता है। योग - विज्ञान इस परतत्त्व को मनुष्य के शरीर के अंदर ही स्थित मानता है जो राजयोग का मुख्य विषय है।
राजयोग पाश्चात्त्य जगत में मन के गूढ तत्त्वों के अध्ययन के रूपमें बहुत प्रसिद्ध रहा है। इसी के सहारे साधक मन के रहस्यों को विश्लेषित करते हुए आत्म - साक्षात्कार तक पहुँच जाता है। यह मनोविज्ञान के क्षेत्र में आपको एक गहरी अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है। राजयोग का अभ्यासी अपने मन के रहस्यों को जानने में पूर्ण समर्थ हो जाता है। वह साधक मन तथा इन्द्रियों के नियन्त्रण करने की कला या युक्तियाँ जान जाता है। वह निराशा के विचारों को आशायुक्त या नास्तिक भावना को आस्तिकता में परिणत करने में समर्थ हो जाता है। नियन्त्रित मन और वासनाओं के दमनपूर्वक वह किसी भी दुर्लभ परतत्त्व को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। आप कह सकते हैं कि ' मेरा योग में कोई आकर्षण नहीं है। आप यह भी सोच सकते हैं कि ' मेरे पास सभी आनन्द और उपभोगकी वस्तुएँ हैं तो मुझे योग की आवश्यकता क्या है? और मनोनियन्त्रण तथा इन्द्रिय - निग्रह की आवश्यकता भी क्या है? और हमारे पास बहुत - सी बुरी आदतें या दुष्प्रवृत्तियाँ भी हैं, जिनका परित्याग सम्भव नहीं तथा मेरे मस्तिष्क में बहुत - सी धन, सुख - भोग तथा शत्रु - नाश आदि की विषय वासनाएँ भी भरी पड़ी हैं।
सच्ची बात यह है कि आप सब कुछ चाहते हैं - घन, यश, व्यापार में सफलता आदि। किंतु आध्यात्मिक प्रकाश की प्राप्ति में कुछ हदतक मन को नियन्त्रित करना परमावश्यक होता है। यश, धन तथा सफलता - प्राप्ति के लिये भी मन को नियन्त्रित कर उनके उपायों को प्राप्त करने में लगाना पड़ता है। यह सही बात है कि आप को जब अधिक आनन्द की प्राप्ति होती है तो कुछ अच्छे गुण आते हैं और बुरे दोष अपने - आप दूर हो जाते हैं। आपको इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है और इघर आपके सारे दोष गुणों में परिवर्तित होकर योग- साधना के उपयुक्त बन जाते हैं। योगका थोड़ा अभ्यास करने पर आपके अन्तर्गत कौन - से उपादेय गुण और हेय दोष हैं उन्हें जानने में एवं तत्काल निर्णय करने में आप समर्थ हो जाते हैं। योगाभ्यास में इस बात की आवश्यकता भी नहीं पड़ती कि इसमें स्त्री, पुत्र, धन आदि सांसारिक परिस्थितियों का परित्याग ही करना पड़े। मस्तिष्क के सभी दरवाजे या खिड़कियों को सर्वथा बंद कर देने की भी आवश्यकता नहीं होती।
संसार की जितनी भी ध्वनियाँ या उनका अपना स्वरूप है उसे नष्ट कर या सर्वथा दूर कर देने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे अपनी जगह पड़ी रहें कोई बात नहीं। आप अत्यन्त व्यस्त जीवन में भी अपने मन को नियन्त्रित या किसी एक स्थान पर केन्द्रित कर सकते हैं। आप अत्यन्त दुरूह परिस्थितियों में भी आन्तरिक शान्ति प्राप्त कर सकते हैं या मन को एकाग्र कर सकते हैं। योग ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके मन को नियन्त्रित करने की कला बताता या शिक्षा देता है। आप क्या कर रहे हैं और कहाँ हैं, यह कोई बात नहीं है, यह चिन्ता का विषय नहीं है।
जारी रहेगा...........................
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ENGLISH TRANSLATION
YOGISM OR PHILOSOPHY
Till now we have reviewed the relationship between the religion of yoga and philosophy. Now it must be understood that yoga is different from these two. This religion cannot be called from the point of view of faith and faith. You can be a person of any religion and in spite of this you can become a very lover of yoga. In fact, yoga is a universal world. Religion is a science in view of Yoga. It was developed in India thousands of years before Christ. This ancient yoga system has been the mother of all religious revolutions and has been inspiring all spiritual and religious feelings. Therefore, if you study yoga, then you study your religion only and strengthen your faith and religious feelings and the fundamental secret of your scriptures can be understood clearly through that yoga.
Similarly, yoga education has no vision in sight. It is not tied to the virtues of human intelligence and does not even stand on the basis of human intelligence. It is situated at the base of the research of saints and mahatmas. The sages who have attained the true God or have seen the soul, it is a demonstration of the laws given by them and gives a gradual vision of the spiritual ethos and is able to lead the seeker to the ultimate goal. In this way, yoga is a practical philosophy and a symbol of universal religion.
Nature of Intelligence
Ghyana Yoga or Buddhayog makes a clear and simple explanation of religion, which ultimately turns the intellect into an intense intense emotion. The goal of Ghyana Yoga is to provide full support in understanding its true reality. What is the actual form? And what is the real world? what is God? And what is the Divine Shakti or God - Tattva? These are philosophical aspects of yoga. It makes you so intelligent, humble and careful, so that you do not panic in adverse situations or get confused in misfortune situations.
Form of Devotion
Bhakti Yoga is the path to achieve love to God. Most religions of the world attach great importance to love for God. In all religions, every person has been preached to pay obeisance - devotion and love to God and to experience a wonderful joy through perfect surrender. The path of devotion and devotion to God paved through devotion in Yog Marg. You do not love God only because you are very afraid or have become upset due to some trouble. The esoteric secrets of God should be studied and practiced in accordance with logic, logic and scientific process.
Dhyana Yoga (Raja Yoga) The Art Of Concentrating The Mind
When you are surrounded by odd problems, then it becomes necessary for you to think how you can calm your brain completely and think of ways to get rid of that problem and how to become free. If you are able to do this, then you are able to solve any problem or find a solution. On the other hand, if you control the mind and do not find a solution to that problem, then you are also unable to get rid of the odd situations. Scientists of psychology and yogis who believe everything to be the mind, explore another parallel object under the brain, through which the human being can rise above his own mind and heart. Yoga - Science considers this layer within the human body, which is the main subject of Raja Yoga.
Raja Yoga has been very famous in the Western world as a study of the esoteric elements of the mind. With this, the seeker analyzes the secrets of the mind and reaches self-realization. It gives you a deep insight into the field of psychology. The practitioner of Raja Yoga is able to know the secrets of his mind. That seeker knows the art or tips of controlling the mind and the senses. He is able to convert thoughts of despair into hopeful or atheistic feelings into theism. By suppressing the controlled mind and desires, he may be able to achieve any rare layer. You can say that 'I have no attraction in yoga. You can also think that 'I have all the joys and consumables, so what is the need of yoga?' And what is the need for nomination and sense-control? And we also have many bad habits or vicious tendencies, which are not possible to abandon and there is also a lot of money in my mind, lusts related to wealth, happiness and enjoyment and enemy destruction.
The truth is that you want everything - cube, fame, success in business, etc. But it is absolutely necessary to control the mind to some extent in the attainment of spiritual light. To achieve fame, wealth and success, one has to control the mind and invest in achieving his remedies. It is true that when you get more joy, then some good qualities come and the bad faults disappear on their own. You do not have to wait for this and the house becomes transformed into all your dosha qualities and becomes suitable for yoga practice. By doing a little practice of yoga, you are able to know which are the beneficial qualities and hay doshas under you and take immediate decision. There is no need in yoga practice that one has to abandon worldly conditions such as woman, son, money etc. There is also no need to close all the doors or windows of the brain.
There is no need to destroy or completely remove all the sounds of the world or their own form. It doesn't matter that they are standing in their place. You can control your mind or focus in one place even in very busy life. You can achieve inner peace or concentrate the mind even under the most difficult circumstances. Yoga is the only thing that teaches or teaches the art of controlling your mind. No matter what you are doing and where you are, it is not a matter of concern.
TO BE CONTINUE.....................
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