YOGA And Its VARIOUS PERSPECTIVES
योग और उसके विभिन्न दृष्टिकोण
Paragraph 1
क्या आपने कभी यह सोचा है कि जब आपकी सभी अभिलाषाएँ पूर्ण हो जायेंगी तो आप कैसा अनुभव करेंगे? उस समय किस सीमातक आपका मस्तिष्क संकल्पोंसे युक्त, संकल्पमुक्त अथवा मिश्रित स्थिति में रहेगा? आप क्षण - क्षण, दिन - दिन यह सोचते जाते हैं कि मेरी कितनी प्रगति हुई और कितनी होनी चाहिये। यद्यपि आपकी ये मान्यताएँ भी प्रतिक्षण बदलती जाती हैं, इतनेपर भी आप यह नहीं समझ पाते हैं कि 'आपका वास्तविक स्वरूप क्या है?' आप अपने मनमें यह सोचते हैं कि 'मेरा जीवन सदा असफल रहा है और मैं किसी भी मार्गमें सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। थोड़े से परिवर्तन के बाद फिर आप यह सोचते हैं कि की सभी करेंगे? जैसा पहले सोचते रहे वैसे आप सर्वथा नगण्य नहीं हैं। फिर से युक्त, आप यह देखते हैं कि आपने इतनी शक्ति अर्जित कर ली है कि आप प्राप्त हुए तथा प्राप्त होने वाले विघ्नों पर विजय प्राप्त कर कि मेरी सकते हैं। आप असम्भव और सम्भव वस्तुओं को अच्छी तरह आपकी समझ सकते हैं। इस पर आप देखेंगे कि आपके हृदय के अन्तर्गत ही असीम दुर्लभ पदार्थों तथा सीमाओं को प्राप्त रूप क्या करने की शक्ति संनिहित है। योग के बारे में अभी तक बहुत कुछ कहा जा चुका है। प्राप्त कुछ लोग शारीरिक आसनों एवं प्राणायामों तथा कुछ न्यौली आदि शरीर की सञ्चालन - प्रक्रियाओं को योग समझते हैं और कुछ लोग महत् आशर्यजनक सिद्धियों की उपलब्धी को और कुछ लोग शारीरिक बल तथा मनोबल बढ़ाने को भी योग मानते हैं। किन्तु योग इसकी अपेक्षा भी कुछ और अधिक है। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि योग के विविध प्रायोगिक स्वरूपो को समझा जाय और उसके द्वारा कौन - कौन - सी वस्तुएँ प्राप्त हो सकती हैं, यह भी जाना जाय । वस्तुतः योग एक संस्कृत शब्द है , जिसका भाव यह है कि जो आप अपनेको समझते हैं उससे आप सर्वथा भिन्न है। तत्त्वतः जो आप हैं, उससे संयुक्त करने वाली साधना का नाम योग है । आप सम्पूर्ण विश्व की मूल शक्ति है न कि इस सौमित शारीर में रहने वाले सामान्य व्यक्ति अपने हृदय के एकान्त मूल भाग में जो स्थित है, वही आप है। जैसे एक जीवनीशक्ति ( जीवात्मा ) शरीर में रहकर हाथ, पैर, आँख - कान तथा अस्थि, मज्जा, मांस आदि में व्याप्त होकर उनका सञ्चालन करती है, उसी प्रकार एक महान् शक्ति सम्पूर्ण विश्व के विभक्त वर्ग - पृथ्वी आदि लोको का तथा समस्त प्राणियों का विधिवत् सञ्चालन करती है, यह समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिये। विश्व के सभी धर्मो ने उस तत्त्व को विभिन्न भाषा एवं शैलियों में समझाने का प्रयास किया है। बाइबिल के अनुसार ' परमात्माने मनुष्य को अपने ही आकार - प्रकार के अनुरूप निर्मित किया, स्वर्ग का साम्राज्य उसके हृदय में ही है। ' मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान की यह घोषणा है कि मनुष्य परमात्मा की ही एक ज्योतिर्मय किरण है ', उपनिषदें भी ' तत्त्वमसि ' अर्थात् ' तुम वही परमात्मा हो ' - यह कहकर इसी तथ्यको प्रतिपादित करती है। यही विश्व के सभी धर्मोकी आधारभूत मान्यता है।-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
English Translation
YOGA And Its VARIOUS PERSPECTIVES
Paragraph 1
Have you ever thought about how you will feel when all your desires are fulfilled? At that time, to what extent will your brain be in a resolution, free or mixed state? You keep thinking moment by day, day by day, how much progress I have made and how much should be done. Although these beliefs of yours also change, you still do not understand 'What is your true nature?' You think in your mind that 'My life has always failed and I cannot succeed in any path. After a little change then you think that everyone will do? You are not completely insignificant as previously thought. Contained again, you see that you have gained so much power that you can achieve and overcome the obstacles that you can. You can understand impossible and possible things well. On this, you will see that within your heart, the power to do what is available in the form of infinitely rare substances and limitations is embodied. Much has been said about yoga so far. Some people who have received physical asanas and pranayamas, and some niyoli, etc. understand the operation of the body as yoga and some people consider the achievement of important physical attainments and some people also increase physical strength and morale. But yoga is something more than this. That is why it is necessary to understand the various experimental forms of yoga and what things can be achieved by it, it should also be known. In fact, Yoga is a Sanskrit word, which means that you are completely different from what you perceive yourself to be. In essence, the name of Sadhana, which combines with what you are, is Yoga. You are the basic power of the whole world, not the ordinary person living in this gentle body, who is situated in the solitary core of his heart, he is you. Just as a living person (Jeevatma) resides in the body, spreading his hands, feet, eyes and ears and bone, marrow, flesh, etc., in the same way, a great power divides the whole world - earth, etc., of the locos and all beings. There should be no difficulty in understanding that it operates properly. All religions of the world have tried to explain that element in different languages and styles. According to the Bible, "God created man according to his own size and type, the kingdom of heaven is in his heart." 'The holy scripture of the Muslim Quran declares that man is a light ray of the divine', the Upanishads also propose this fact by saying 'Tattvamasi' i.e. 'You are the same divine'. This is the basic belief of all religions of the world.-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Paragraph 2
Paragraph 2
ईसामसीह, गौतम बुद्ध, राम, कृष्ण, मूसा और मोहम्मद आदि सभी ने मस्तिष्क की संकीर्णता से ऊपर उठकर उदार एवं गम्भीर चिन्तन का और समस्त विश्व के साथ आत्मभाव करने का निर्देश दिया है और इस प्रकार सभी प्राणियों तथा परमात्मा के साथ तादात्म्य संस्थापित करने का उपदेश दिया है। यही योग का मुख्य लक्ष्य है, यही अर्थात् आत्मा या परमात्मा का साक्षात्कार ही मनुष्य के जीवन का मूल लक्ष्य है। दर्शनशास्त्रों की जो योग - पद्धति है, वह एक ऐसे सामान्य मार्ग का निर्धारण करती है कि वह व्यक्ति अपने बौद्धिक या आत्मज्ञान के प्रकाश से सम्बद्ध हुआ है या नहीं। योग ध्यान - समाधि की ओर बढ़ने के लिये यम - नियमों का निर्देश करता है। जिनके द्वारा मनुष्य आत्मसाक्षात्कार करनेमें सक्षम होता है। यह योग - दर्शन की वह प्रणाली है, जो अभ्यास तथा उसके सिद्धान्तों को भी उन्नत करती है। जब हम यहाँ योग की इस प्रकार चर्चा करते हैं तो वहाँ हमारा तात्पर्य आत्म - प्राप्ति के क्रमिक विकास के साधनों से रहता है। इससे भिन्न योग सार्वभौम सत्ता की ओर केन्द्रित करता है। दोनों प्रकार के योगों का स्पष्ट अन्तर अब हम मुख्य योग - सरणि के अनुसरण की ओर प्रवृत्त करता है।
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English Translation
Jesus Christ, Gautama Buddha, Rama, Krishna, Moses and Mohammed, etc. have all instructed to rise above the narrowness of the mind to take generous and serious thinking and to become self-realized with the whole world and thus to establish identity with all beings and God. Have preached This is the main goal of yoga, that is, the interview of the soul or the divine is the basic goal of human life. The Yoga method of philosophies determines such a common path whether a person is related to the light of his intellectual or enlightenment. Yoga instructs Yama - rules to move towards meditation - samadhi. By which man is capable of introspection. It is that system of yoga philosophy which also promotes practice and its principles. When we discuss yoga in this way, then there we mean by means of gradual development of self-realization. Unlike this, yoga focuses on universal power. The clear distinction between the two types of yogas now leads us to follow the main yoga-array.
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