ATTEMPT TO CHANGE THE FORM OR NATURE OF KARMA YOGA
कर्मयोग का स्वरूप या स्वस्वरूप के परिवर्तन का प्रयत्न
'कर्मयोग' इस शब्द का प्रयोग बुद्धियोग के लिये किया गया है। यह सोचना बहुत कठिन है कि कोई घटना सहसा घटित हो जायगी। मन के रहस्यों के गम्भीर अध्ययन से यह पता चलता है कि विश्व के धरातल पर कोई घटना घटित होती है वह अकारण नहीं है, बल्कि एक महती शक्ति के नियन्त्रित ध्यान और संकल्प का ही परिणाम है। जब आप इस योग - साधना में आगे बढ़ते हैं तो आप देखेंगे कि आपकी वर्तमान मानसिक
स्थिति विगत सभी घटनाचक्रों के परिणाम स्वरूप एक निश्चित बिन्दु पर पहुंचती है। मनुष्य के जीवन की प्रत्येक घटना - चक्र में आयी हुई प्रत्येक परिस्थिति किसी विगत कर्म का परिणाम है और वह कर्म - विपाक के विशिष्ट सिद्धान्त को निश्चित करता है। यह कोई एक ऐसी सामान्य घटना नहीं है जिसकी सर्वथा उपेक्षा कर दी जाय। इसलिये आपको अपने कष्टों के लिये संसार पर या अपने परिवार पर दोषारोपण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि व्यक्ति अपने कर्मो का ही फल भोगता है। आप अपने प्रासादा (महल) के निर्माण करने वाले शिल्पी स्वयमेव ही हैं। आप विश्वास कीजिये कि आप अपने मन को किसी अभिमत वस्तु पर नियन्त्रित कर सकते हैं और पुनः उसे किसी संत या भगवान की ओर प्रवृत्त कर सकते हैं। इस प्रकार आप कर्म, योग या ध्यान के आश्रय से अपनी सारी विपरीत परिस्थितियों को अत्यन्त अनुकूल रमणीय स्थिति में परिवर्तित करने में समर्थ हैं। यही योग की चतुर्थ श्रेणी कर्मयोग का क्षेत्र है।
स्थिति विगत सभी घटनाचक्रों के परिणाम स्वरूप एक निश्चित बिन्दु पर पहुंचती है। मनुष्य के जीवन की प्रत्येक घटना - चक्र में आयी हुई प्रत्येक परिस्थिति किसी विगत कर्म का परिणाम है और वह कर्म - विपाक के विशिष्ट सिद्धान्त को निश्चित करता है। यह कोई एक ऐसी सामान्य घटना नहीं है जिसकी सर्वथा उपेक्षा कर दी जाय। इसलिये आपको अपने कष्टों के लिये संसार पर या अपने परिवार पर दोषारोपण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि व्यक्ति अपने कर्मो का ही फल भोगता है। आप अपने प्रासादा (महल) के निर्माण करने वाले शिल्पी स्वयमेव ही हैं। आप विश्वास कीजिये कि आप अपने मन को किसी अभिमत वस्तु पर नियन्त्रित कर सकते हैं और पुनः उसे किसी संत या भगवान की ओर प्रवृत्त कर सकते हैं। इस प्रकार आप कर्म, योग या ध्यान के आश्रय से अपनी सारी विपरीत परिस्थितियों को अत्यन्त अनुकूल रमणीय स्थिति में परिवर्तित करने में समर्थ हैं। यही योग की चतुर्थ श्रेणी कर्मयोग का क्षेत्र है।
कर्मयोग किसी विशिष्ट लक्ष्य को लक्षित कर प्रवृत्त होता है। कर्म ही शनैः - शनैः योग का रूप धारण करता है और पुनः यह क्रमशः भक्तियोग और ज्ञानयोग के रूपमें वृद्धिङ्गत होता हुआ निर्विकल्प समाधि - ईश्वरप्राप्ति या स्वरूपावस्थिति तक पहुँच जाता है। एकान्त या अत्यन्त संन्यासी का जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा यह अधिक उत्तम होगा कि आप नियमित रूप से अपने दैनन्दिन क्रिया - कलापों का कर्मयोग के रूप में सम्पादन करें। तब आप देखेंगे कि संसार कष्ट का स्थान नहीं है, किंतु आपके लिये आनन्दानुभव का स्थान बन जायगा और आप अपने जीवन में पर्याप्त ऊपर उठ जायँगे। तब आप यह देखेंगे कि यह विश्व आपकी आध्यात्मिक साधना में एक परोपकारी वस्तु बन जायगा और पुनः सम्पूर्ण विश्व आनन्दमय परमात्मा के रूपमें ही दीखने लग जायगा।
अन्य प्रकीर्ण योग
जपयोग - इसमें श्रद्धा - भक्ति के साथ भगवन नाम या तान्त्रिक मन्त्रों के बार - बार जप का विधान है। इसमें कभी वैदिक सूक्तों के साथ ही तान्त्रिक मन्त्रों के साथ कोई प्रार्थना या स्तुति भी की जाती है। यह भक्तियोग का ही एक अङ्ग है।
हठयोग – यह मनोविज्ञान तथा शारीरिक व्यायाम से सम्बन्धित योग है, जिसमें शरीर के विभिन्न अङ्गों को विशिष्ट नियमों से संचालन करना पड़ता है। इसमें अनेक प्रकार के आसन, प्राणायाम तथा नेति, धौति, वस्ति आदि का अभ्यास करना पड़ता है। यह राजयोग में प्रवेश करनेका प्रारम्भिक आधारभूत योग है।
कुण्डलिनी - योग - यह गुप्त रहस्य या दिव्य ज्ञान को प्रदर्शित करने वाला योग है, जिसे कुण्डलिनीयोग या शक्तियोग भी कहते हैं। यह कुण्डलिनी शक्ति छः चक्रों का आश्रय लेकर प्रत्येक प्राणी के हृदय नलिका के अन्तर्गत निवास करती है। यह बात कोई महत्त्व नहीं रखती कि आप किस प्रकार की साधना कर रहे हैं, कुण्डलिनी - शक्ति आपको सभी प्रकार के मार्गो में सहायता प्रदान करेगी, यह एक तापमापक यन्त्र की तरह शरीर में स्थित होकर आपकी साधना की प्रगति को सूचित करती है।
नादयोग - यह एक विशेष प्रकार का योग है, जिसमें साधक रहस्य - पूर्वक ध्वनियों को ध्यान से सुनता रहता है। इस साधना का साधक योगी अपने कानों के भीतर अत्यन्त ध्यान से हृदय से उद्भूत होने वाली ध्वनियों को श्रवण करता है। जब साधक इस प्रकारकी विभिन्न ध्वनियों को सुनने का अभ्यस्त हो जाता है तो उसकी स्थिति ध्यान एवं समाधि में प्रवेश करने के योग्य हो जाती है।
क्रियायोग - इस योग - पद्धति में शास्त्रों के अध्ययन और उनके अनुसार श्रद्धापूर्वक कर्म करते हुए प्रगाढ़ भक्ति - भावना को उन्नत करने का यत्न किया जाता है। यह हृदय को शुद्ध कर देता है और तत्पश्चात् साधक किसी भी महान् योग में सिद्धि प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। क्रियायोग के विशेष परिचय के लिये पद्मपुराण का क्रियायोग सार - खण्ड विशेष सहायक है।
आप योगी अवश्य बनिये
आप अपने प्रत्येक दिन के जीवन में थोड़ा - थोड़ा समय देकर ज्ञानार्जन, भक्ति, ध्यान और कुछ कर्मानुष्ठान का भी संतुलित भाव से अभ्यास करें। उपरिनिर्दिष्ट बड़े तथा छोटे सभी योगों का आप अपने प्रत्येक दिन के जीवन में सम्मिलित रूप से थोड़ा - थोड़ा अवश्य अभ्यास करते रहें। इस प्रकार धीरे - धीरे आप सार्वभौम - योग - सम्पूर्ण योग या सम्यक् योग का अभ्यास करने लग जायेंगे। योग आपके शरीर की शोभा को बढ़ा देगा एवं दैवी गुणों से आपके व्यक्तित्व का विकास करेगा और भावी सफलताओं तथा दिव्य ज्ञान ज्योति की प्राप्ति के लिये दृढ़ आधार बन जायगा। भगवान का पूर्ण कृपा - प्रसाद आपको प्राप्त हो।
जारी रहेगा.....................................
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ENGLISH TRANSLATION
ATTEMPT TO CHANGE THE FORM OR NATURE OF KARMA YOGA
The term 'Karmayoga' has been used for Buddha Yoga. It is very difficult to think that an event will happen immediately. A serious study of the mysteries of the mind shows that an event that occurs on the surface of the world is not without reason, but is the result of the controlled focus and determination of a great power. When you move forward in this yoga practice, you will see that your present mental.
The situation reaches a certain point as a result of all the past events. Every event of human life - every situation in the cycle is the result of a past karma and that karma - determines the specific principle of vipaka. This is not a common phenomenon that should be ignored altogether. That is why you do not need to blame the world or your family for your sufferings, because a person suffers the fruits of his actions. You are the artisan who built your prasada (palace). Believe that you can control your mind on a certain object and then turn it back to some saint or God. In this way, you are able to convert all your adverse situations into a very favorable state of mind through the shelter of karma, yoga or meditation. This is the fourth category of yoga, the field of Karmayoga.
Karmayoga tends to target a specific goal. Karma only takes the form of shanaih - shanayah yoga and again it increases in the form of bhakti yoga and jnana yoga respectively, reaching nirvikalpa samadhi - the attainment of God or form. It is better that you regularly perform your daily activities in the form of karmayoga than to spend a life of solitude or a great monk. Then you will see that the world is not a place of suffering, but will become a place of joy for you and you will rise high enough in your life. Then you will see that this world will become a philanthropic thing in your spiritual practice and the whole world will be seen as a blissful God.
OTHER MISCELLANEOUS TOTALS
Japayog - There is a law of repeated chanting of Bhagavan name or tantric mantras with devotion and devotion. In it, along with the Vedic Suktas, any prayer or praise is also done with the Tantric Mantras. This is a part of Bhakti Yoga.
Hatha Yoga - This is yoga related to psychology and physical exercise, in which different organs of the body have to operate by specific rules. Many types of asanas, pranayama and neti, dhoti, vasti etc. have to be practiced in this. This is the initial basic yoga to enter Raja Yoga.
Kundalini - Yoga - This is a yoga displaying the secret secret or divine knowledge, which is also known as Kundalini Yoga or Shakti Yoga. This Kundalini Shakti takes shelter of six chakras and resides under the heart tube of every living being. It does not matter what kind of cultivation you are doing, Kundalini - Shakti will help you in all kinds of paths, it informs the progress of your cultivation by being located in the body like a thermometer.
Nadayoga - This is a special type of yoga, in which the seeker listens carefully to the secret sounds. The yogi, a practitioner of this sadhana, listens to the sounds emanating from the heart with the utmost attention within his ears. When the seeker gets accustomed to listening to different sounds of this kind, then his condition becomes capable of entering meditation and samadhi.
Kriya Yoga - In this yoga system, the study of the scriptures and doing devotional deeds according to them earnestly promotes deep devotion. It purifies the heart and then the seeker acquires the ability to attain perfection in any great yoga. For the special introduction of Kriyayoga, the Karyayoga Saar-Khand of Padmapuran is a special help.
YOU MUST BE A YOGI
You should spend some time in your day-to-day life and practice enlightenment, devotion, meditation and some karmunsthan also in a balanced sense. You must keep practicing all the above mentioned major and minor yogas a little bit in your every day life. In this way, gradually you will start practicing universal - yoga - complete yoga or samyak yoga. Yoga will enhance the beauty of your body and will develop your personality with divine qualities and will become a firm foundation for future successes and the attainment of Divine Knowledge Light. You receive the full grace of God - Prasad.
TO BE CONTINUE..................................
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