THE PLACENTA And PARA SIDDHIS OBTAINED From YOGA

 योग से प्राप्त होने वाली अपरा एवं परा सिद्धियाँ

सर्वथा सिद्धि विहीन व्यक्ति की कहीं कोई प्रतिष्ठा नहीं होती और विशेष सिद्धियों के स्वाभाविक निधान होने के कारण परमेश्वर सर्व समर्थ एवं शक्तिमान होता है और उसकी सर्वत्र पूजा - प्रतिष्ठा होती है। अतः उच्च कोटि का ज्ञान - विज्ञान, जीवन मुक्ति एवं दिव्य शक्ति आदि की सिद्धियाँ सब को अभीष्ट होती है। अणिमादि अष्टविध सिद्धियाँ तो प्रसिद्ध ही हैं। ये सिद्धियाँ यदि अहंकार आदि को जन्म देती हैं और साधक अपनी प्रतिष्ठा के लिये इनका चमत्कार आदि के रूप में प्रदर्शन करता है तो ये ही सिद्धियाँ उसके मोक्ष आदि परा सिद्धियों की प्राप्ति में अन्तराय बन जाती हैं, उसके पतन का कारण बन जाती है, साथ ही इन सिद्धियों की शक्ति भी नष्ट हो जाती है। अतः सिद्धि प्राप्त साधक को इनका उपयोग यदि आवश्यक हो तो यथा सम्भव परोपकार के कार्यों तथा जीवमात्र के कल्याण के लिये करना चाहिये और इन्हें सर्वथा गुप्त रखते हुए निरभिमान पूर्वक आगे की साधना करते रहना चाहिये।
शरीर में इन्द्रियों तथा चित्त में विलक्षण परिणाम उत्पन्न होने अर्थात् इनकी प्रकृति में विलक्षण परिवर्तन होने को सिद्धि कहते हैं। सिद्धियों के पाँच भेद से पाँच प्रकार के सिद्ध पुरुष भी माने जाते हैं। इनके निमित्त पाँच हैं — जन्म, ओषधि, मन्त्र, तप और समाधि। वे सिद्धियाँ जिनकी उत्पत्ति में केवल जन्म ही निमित्त है, जन्मजा सिद्धि है। जैसे पक्षियों आदि का आकाश में उड़ना अथवा कपिल आदि महर्षियों में उनके पूर्वजन्म के पुण्यों के प्रभाव से जन्म से ही सांसिद्धिक ज्ञान का उत्पन्न होना। पारे आदि रसायनों के उपयोग से शरीर में विलक्षण परिणाम उत्पन्न करना ओषधिजा सिद्धि है। मन्त्र द्वारा प्राप्त सिद्धि मन्त्रजा सिद्धि है, जैसे स्वाध्याय द्वारा इष्ट देवता का मिलना। तप से अशुद्धि के दूर हो जाने पर शरीर और इन्द्रियों की सिद्धि होती है, यह तपोजा सिद्धि है। योगाभ्यास द्वारा समाधि- प्राप्त सिद्धि समाधिजा सिद्धि है।
इनमें से यहाँ पर योग एवं तप के प्रभाव से प्राप्त होने वाली मुख्य सिद्धियों का ही विशेष उल्लेख किया जाता है। मोक्ष रूपी परम सिद्धि की प्राप्ति निर्बीज समाधि का फल है, परंतु सब प्रकार की दिव्य ऐश्वर्य रूपी नाना प्रकार की अपरा सिद्धियाँ सम्प्रज्ञात समाधि से ही सम्बन्ध रखती हैं। योगाभ्यास करने वाले योगी महात्माओं को जो योग की विभिन्न सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, उनका संक्षिप्त परिचय महर्षि पतञ्जलि के योग दर्शन के आधार पर यहाँ दिया जा रहा है।
जारी रहेगा.........................................
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ENGLISH TRANSLATION

THE PLACENTA And PARA SIDDHIS OBTAINED From YOGA

A person without complete accomplishment has no reputation anywhere and due to the inherent endowment of special attainments, God is all-powerful and powerful and has the reputation of worship everywhere. Therefore, all the wishes of high-quality knowledge, science, liberation of life and divine power etc. are desired. Animadi Ashtavidhi Siddhi is well known. If these Siddhis give rise to arrogance etc. and the seeker performs them as miracles etc. for his prestige, then these Siddhis become intrinsic in the attainment of his salvation etc. The power of these siddhis is also destroyed. Therefore, the seeker of attainment should use them if necessary, for possible benevolent actions and for the welfare of the living, and should keep doing all the spiritual practices in the future, keeping them completely secret.
Siddhi is said to produce unique results in the senses and mind in the body, that is, there will be a unique change in their nature. Five types of siddhas are also considered by the five distinctions of siddhis. There are five for them - birth, medicine, mantra, penance and samadhi. Siddhis whose birth is only for birth, birth is accomplishment. Like birds etc. flying in the sky or the birth of worldly knowledge in Kapil etc. due to the influence of the virtues of their previous birth. Producing unique results in the body by the use of chemicals like mercury etc. is a proven remedy. Siddhi attained by mantra is mantraja siddhi, such as the meeting of a deity favored by Swadhyaya. When the impurity is overcome by austerity, body and senses are attained, this is austerity. The attainment of samadhi by yoga practice is samadhija siddhi.
Of these, special mention is made here of the main siddhis obtained by the effects of yoga and austerity. The attainment of ultimate attainment of salvation is the fruit of Nirbij Samadhi, but all kinds of divine siddhis of all kinds of divine opulence are related to Samprajnata Samadhi. The yogic Mahatmas, who are practicing yoga, receive various yogic principles, a brief introduction is given here on the basis of Yoga philosophy of Maharishi Patanjali.
TO BE CONTINUE...........................
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